Saturday, July 19, 2025
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जातीय संतुलन की रणनीति और मनोहर लाल खट्टर का संभावित नया रोल

डॉ. अतुल मलिकराम (राजनीतिक रणनीतिकार)

भारतीय राजनीति में जातीय संतुलन हमेशा से सत्ता की कुंजी रहा है, और बीजेपी ने इसे एक व्यवस्थित रणनीति के रूप में अपनाकर कई राज्यों में मजबूत पकड़ बनाई है। आज देश के 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों में से 21 में बीजेपी की सत्ता है। यह सीधे तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व का परिणाम है, लेकिन इसके पीछे एक अहम और कम चर्चित वजह है – जातीय और सामाजिक संतुलन का फ़ॉर्मूला

दिल्ली से लेकर राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा और नॉर्थ ईस्ट तक बीजेपी ने अलग-अलग जातीय और क्षेत्रीय समूहों को संगठन व सत्ता में प्रतिनिधित्व देकर अपनी पकड़ को मज़बूत किया है। यही वजह है कि बीजेपी के शासन में हर समुदाय को कहीं न कहीं जगह मिलती हुई दिखती है। अनुसूचित जनजाति (ST), अनुसूचित जाति (SC), ओबीसी, सवर्ण, सिख, बौद्ध, यहां तक कि कुछ अल्पसंख्यक समूह भी संगठनात्मक संरचना का हिस्सा बने हैं।

हालाँकि, एक समुदाय ऐसा है जो अभी तक शीर्ष नेतृत्व में उतना मज़बूती से नहीं दिखा—पंजाबी समाज। अब माना जा रहा है कि इस कमी को पूरा करने के लिए बीजेपी अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष किसी पंजाबी चेहरे को बना सकती है, और सबसे बड़ा नाम है मनोहर लाल खट्टर। लेकिन सवाल उठता है—खट्टर ही क्यों? और पंजाबी ही क्यों?

बीजेपी का जातीय बैलेंसिंग फ़ॉर्मूला

बीजेपी की रणनीति साफ़ है—हर राज्य और हर समुदाय से एक चेहरा आगे लाओ, ताकि वोट बैंक भी मज़बूत हो और राजनीतिक संदेश भी जाए कि पार्टी सबकी है।

जनजातीय समुदाय: छत्तीसगढ़ में विष्णु देव साय को मुख्यमंत्री बनाना इसी सोच का हिस्सा था।

ओबीसी समुदाय: मध्य प्रदेश में मोहन यादव, हरियाणा में नायब सिंह सैनी को सीएम बनाकर ओबीसी नेतृत्व को मज़बूती दी गई।

वैश्य समाज: मध्य प्रदेश के नए प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल और दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता वैश्य वर्ग से आते हैं।

दलित समुदाय: हरियाणा में पाल-गड़रिया समुदाय को ओबीसी से हटाकर एससी में शामिल कर बीजेपी ने नया समीकरण बनाया।

सवर्ण समुदाय: महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस, राजस्थान में भजनलाल शर्मा (दोनों ब्राह्मण) और उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ (राजपूत) को सीएम बनाना इस समुदाय को साधने की रणनीति का हिस्सा है।

अल्पसंख्यक समूह: अरुणाचल प्रदेश में पेमा खांडू (बौद्ध समुदाय) सीएम हैं। हालाँकि मुस्लिम समुदाय को अभी तक मुख्यमंत्री जैसे बड़े पद पर प्रतिनिधित्व नहीं मिला, लेकिन अल्पसंख्यक मोर्चे के जरिए उन्हें संगठन से जोड़ने की कोशिश ज़रूर की गई।

अब पंजाबी समाज की बारी?

बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व में पंजाबी समुदाय की भागीदारी अपेक्षाकृत कम रही है। पार्टी को पता है कि उत्तर भारत और खासकर हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, हिमाचल और पश्चिमी यूपी में पंजाबी मतदाताओं का असर निर्णायक है। ऐसे में अगर राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर किसी पंजाबी को आगे लाया जाता है, तो इसका सीधा राजनीतिक संदेश जाएगा।

मनोहर लाल खट्टर इस दृष्टि से सबसे उपयुक्त चेहरा माने जा रहे हैं—

वे हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं और संगठनात्मक कार्यों में निपुण हैं।
उनकी छवि साफ-सुथरी और प्रशासनिक अनुभव से भरी हुई है।
वे संघ की पृष्ठभूमि से आते हैं, जिससे संगठन को सहज स्वीकार्यता मिलेगी।
पंजाबी समाज के साथ-साथ हरियाणा और दिल्ली जैसे क्षेत्रों में राजनीतिक प्रभाव बढ़ेगा।

रणनीति का बड़ा लाभ

बीजेपी की जातीय संतुलन रणनीति का सबसे बड़ा फायदा यह है कि कोई भी समुदाय खुद को अलग-थलग महसूस नहीं करता। यह पार्टी को सिर्फ चुनावी लाभ ही नहीं देता, बल्कि दीर्घकालिक राजनीतिक मज़बूती भी देता है। अगर खट्टर को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाता है, तो—

पंजाबी समुदाय को शीर्ष नेतृत्व में सीधा प्रतिनिधित्व मिलेगा।

उत्तर भारत में बीजेपी का सामाजिक समीकरण और मज़बूत होगा।

पंजाब जैसे चुनौतीपूर्ण राज्य में पार्टी की एंट्री स्ट्रैटेजी को बढ़ावा मिलेगा।

बीजेपी का जातीय और क्षेत्रीय संतुलन अब तक का सबसे प्रभावी राजनीतिक फ़ॉर्मूला साबित हुआ है। इसी फ़ॉर्मूले को आगे बढ़ाते हुए पार्टी अब पंजाबी समुदाय को शीर्ष नेतृत्व में जगह देने की तैयारी कर सकती है। मनोहर लाल खट्टर का नाम इसी रणनीति की अगली कड़ी के रूप में देखा जा रहा है।

आने वाला समय बताएगा कि बीजेपी वास्तव में इस बैलेंस को किस दिशा में ले जाती है, लेकिन इतना तय है कि पार्टी ने समावेशी नेतृत्व का मॉडल बना लिया है, जिसने उसे आधे से ज़्यादा भारत में सत्ता दिलाई है।

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