Monday, August 18, 2025
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उपराष्ट्रपति चुनाव 2025: NDA vs इंडिया गठबंधन, किसका पलड़ा भारी?

नई दिल्ली
 भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने रविवार को महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को आगामी 9 सितंबर को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का उम्मीदवार घोषित कर दिया है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा ने इसकी घोषणा करते हुए कहा कि हम विपक्ष से भी बात करेंगे। हमें उनका समर्थन भी मिलना चाहिए ताकि हम सब मिलकर उपराष्ट्रपति पद के लिए निर्विरोध चुनाव सुनिश्चित कर सकें। इस दौरान पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी उन्हें बधाई दी है। वहीं सीपी राधाकृष्णन ने भी दोनों नेताओं का शुक्रीया अदा किया। तो चलिए इन सबके बीच आपलोगों को बताते हैं कि इस चुनाव में किसका पलड़ा भारी है…

एनडीए या इंडिया? उपराष्ट्रपति चुनाव में किसका पलड़ा भारी
बता दें कि भारत के उपराष्ट्रपति का चुनाव 9 सितंबर को होने जा रहा है। जिनका चुनाव लोकसभा और राज्यसभा, दोनों के सदस्यों द्वारा किया जाता है, जिनमें उच्च सदन के मनोनीत सदस्य भी शामिल हैं। वर्तमान में, एनडीए का संख्यात्मक रूप से पलड़ा भारी है। दोनों सदनों की संयुक्त क्षमता 786 है, जिसमें 6 रिक्तियां शामिल हैं – 1 लोकसभा (बशीरहाट, पश्चिम बंगाल) में और 5 राज्यसभा से जिनमें चार जम्मू-कश्मीर से और एक पंजाब से, जहां आप सांसद संजीव अरोड़ा ने राज्य विधानसभा उपचुनाव जीतने के बाद इस्तीफा दे दिया था।

समझिए पूरी गणित
वहीं, पूरी तरह से भागीदारी मानते हुए, एक उम्मीदवार को जीतने के लिए कम से कम 394 वोटों की जरूरत पड़ती है। एनडीए की स्थिति फिलहाल अच्छी है, क्योंकि वर्तमान में लोकसभा में 542 सदस्य हैं जिनमें 293 सांसद एनडीए के हैं और 240 सदस्यीय राज्यसभा (प्रभावी संख्या) में 129 सांसद एनडीए के हैं। जिनमें मनोनीत सदस्यों का समर्थन भी शामिल है।

इससे सत्तारूढ़ गठबंधन के पास अनुमानित कुल 422 वोट हैं, जो आवश्यक बहुमत से कहीं अधिक है। संविधान के अनुच्छेद 68(2) के तहत, त्यागपत्र, मृत्यु, पद से हटाए जाने या किसी अन्य कारण से उपराष्ट्रपति के पद की रिक्ति को भरने के लिए चुनाव “यथाशीघ्र” कराया जाना चाहिए। निर्वाचित व्यक्ति पदभार ग्रहण करने के दिन से पूरे पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा करता है।

सीपी राधाकृष्णन की उम्मीदवारी से संकट में विपक्ष,उपराष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी कैसे कर गई बड़ा खेल?

बीजेपी ने एनडीए की ओर से पहले ही उपराष्ट्रपति उम्मीदवार के तौर पर सीपी राधाकृष्णन का नाम घोषित करके विपक्ष और पूरे इंडिया ब्लॉक पर बढ़त बना ली है। पहली बात तो ये है कि एनडीए के पास संसद के दोनों सदनों में इसके लिए पर्याप्त आंकड़े हैं। जीत के लिए 392 सांसदों का समर्थन चाहिए और एनडीए के पास 427 एमपी हैं। यही नहीं, विपक्ष के कई दल और सांसद भी इस चुनाव में एनडीए प्रत्याशी का समर्थन कर सकते हैं। विपक्षी नेताओं ने अभी से इसके संकेत देने शुरू कर दिए हैं और इतिहास भी गवाह है कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में विपक्षी सांसदों को एकजुट बनाए रखना आखिरकार टेढ़ी खीर साबित होती रही है। कुल मिलाकर कहें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में सत्ताधारी एनडीए ने कांग्रेस की अगुवाई वाले विपक्ष को उपराष्ट्रपति चुनाव से पहले ही राजनीतिक शिकस्त दे दी है।
इंडिया ब्लॉक में राधाकृष्णन पर मंथन
सीपी राधाकृष्णन अभी महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं। वहां लोकसभा में चुनाव जीतने के बाद विपक्षी महा विकास अघाड़ी (MVA) की विधानसभा चुनावों में जिस कदर हार हुई, उसने सत्तापक्ष (महायुति) और विपक्ष के बीच की सियासी खाई को बहुत ही चौड़ी कर रखी है। राज्य के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के खिलाफ एमवीए दलों की खुन्नस पूरा देश जानता है। लेकिन, जब से राधाकृष्णन प्रदेश के गवर्नर बने हैं, उनको लेकर विपक्ष से शिकायतें सुनने को नहीं मिली हैं। यही वजह है कि जब एनडीए ने उपराष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में उनका नाम लिया तो उद्धव ठाकरे की पार्टी के नेता और सांसद संजय राउत ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा, ‘वे बहुत ही अच्छी शख्सियत और गैर-विवादित हैं। उनके पास बहुत ज्यादा अनुभव है। मैं उन्हें शुभकामनाएं देता हूं।’ राउत उन नेताओं में से हैं, जो कांग्रेस नेता राहुल गांधी की इन दिनों फर्स्ट लेफ्टिनेंट बने हुए हैं। लेकिन, इंडिया ब्लॉक के औपचारिक फैसले से पहले उन्होंने अपनी मंशा जाहिर कर दी है कि एनडीए उम्मीदवार उन्हें अच्छे लग रहे हैं। एक वरिष्ठ एनडीए नेता ने कहा है,’डीएमके और उसके क्षेत्रीय सहयोगियों की राधाकृष्णन के खिलाफ लड़ने की तत्परता से ही यह तय होगा कि हमारे पास कोई प्रत्याश होगा या यह सर्वसम्मति से उपराष्ट्रपति का चुनाव होगा।’

बीजेपी के दांव पर डोलड्रम में डीएमके
सीपी राधाकृष्णन तमिलनाडु के मंजे हुए राजनेता रहे हैं। उन्होंने अपनी लंबी सियासी पारी में प्रदेश में बीजेपी को स्थापित करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। लेकिन, तमिलनाडु जैसे राज्य में, जहां राजनीतिक धारा बहुत ही कट्टरता के साथ बिखरी हुई है, उनका व्यक्तित्व ऐसा है, जो डीएमके को भी खटक नहीं रहा है। यही वजह है कि डीएमके ने उन्हें उपराष्ट्रपति उम्मीदवार बनाए जाने को एनडीए का अच्छा फैसला बताया है। पार्टी प्रवक्ता टीकेएस एलंगोवन ने एनडीटीवी से कहा है, ‘यह स्वागत योग्य कदम है। वे (सीपी राधाकृष्णन) तमिल हैं और बहुत लंबे समय के बाद एक तमिल भारत का उपराष्ट्रपति बनेगा।….’हालांकि, उन्होंने यह भी कहा है डीएमके इंडिया ब्लॉक में है और वह गठबंधन के फैसले पर अपना निर्णय लेगा। तमिलनाडु में अगले साल ही विधानसभा चुनाव होने हैं। यह भी लगभग तय है कि मुख्य विपक्षी एआईएडीएमके उनकी उम्मीदवारी का समर्थन कर सकती। ऐसे में डीएमके लिए उनका विरोध करना पॉलिटिकली करेक्ट फैसला नहीं माना जाएगा।

ओबीसी नेता हैं सीपी राधाकृष्णन
अगर सीपी राधाकृष्णन उपराष्ट्रपति चुने जाते हैं तो जगदीप धनखड़ के बाद वे ऐसे दूसरे ओबीसी नेता होंगे, जिन्हें राष्ट्रपति के बाद देश के दूसरे नंबर का पद मिलेगा। राहुल गांधी अभी ओबीसी राजनीति की कोशिश में जुटे हुए हैं। जाति जनगणना की उनकी मांग के पीछे असल में ओबीसी वोट बैंक को ही कांग्रेस के साथ जोड़ने की कोशिश है। इनके अलावा ज्यादातर क्षेत्रीय दल ओबीसी की ही राजनीति कर रहे हैं। अक्टूबर-नवंबर में बिहार विधानसभा का चुनाव होना है और प्रदेश की पूरी राजनीति ही अब ओबीसी केंद्रित है। ऐसे में एक ओबीसी उम्मीदवार का विरोध करना विपक्ष के लिए आसान नहीं होगा।

देश में ऐसे चुनावों का इतिहास
भारत में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव का इतिहास देखें तो इसमें सियासी दूरियां मिटती रही हैं। अनेकों ऐसे चुनाव हुए हैं, जिसमें राजनीतिक दलों ने उम्मीदवार को देखकर समर्थन दिया है और सियासी लामबंदी की बेड़ियां तोड़ डाली हैं। सबसे ताजा उदाहरण प्रणब मुखर्जी का राष्ट्रपति चुनाव है। उनके बंगाली बैकग्राउंड की वजह से लेफ्ट और टीएमसी ने उनका समर्थन किया। इसी तरह जब अपने पहले कार्यकाल में यूपीए ने प्रतिभा पाटिल को राष्ट्रपति प्रत्याशी बनाया तो एनडीए में रहते हुए शिवसेना ने उनके मराठी जड़ों की वजह से उनका साथ दिया। इसी तरह से जब बीजेपी ने एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित किया तो उनके मुसलमान होने की वजह से सपा और कांग्रेस भी उन्हें समर्थन देने को राजनीतिक तौर पर मजबूर हो गई। इससे भी पहले इंदिरा गांधी के कार्यकाल में कांग्रेस ने ज्ञानी जैल सिंह को राष्ट्रपति प्रत्याशी बनाया तो कांग्रेस के कट्टर विरोध अकाली दल पहले सिख राष्ट्रपति की वजह से कांग्रेस उम्मीदवार के साथ खड़ा हुआ।

व्हीप के बंधन से मुक्त सांसद
सबसे बड़ी बात की इस चुनाव में व्हीप लागू करने की व्यवस्था नहीं है। मतलब, सांसद जिसे चाहें वोट डाल सकते हैं। यह व्यवस्था विपक्षी दलों के अनेकों सांसदों के लिए एक बड़ा अवसर दे रही है। क्योंकि, उन्हें क्रॉस-वोटिंग के बंधन में फंसने का डर नहीं है।
 

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