Wednesday, August 13, 2025
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मानसून सत्र में CAG रिपोर्ट से खेलों के खर्च पर बड़ा सवाल

लखनऊ
प्रदेश में खेलों पर अरबों रुपये खर्च करने के बावजूद खिलाड़ियों के प्रदर्शन और खेल सुविधाओं के उपयोग पर भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने गंभीर सवाल खड़े किए हैं। विधानसभा में मंगलवार को पेश रिपोर्ट में 2016 से 2022 तक के आंकड़ों के आधार पर खेल विभाग की तैयारियों, संसाधनों और नीतियों पर कई खामियां उजागर की गईं। रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रीय खेलों में प्रदेश का प्रदर्शन गिरा है। 2007 में जहां यूपी के खिलाड़ियों ने 77 पदक जीते थे, वहीं 2022 में यह संख्या घटकर 56 रह गई। सबसे बड़ा मामला सैफई अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम का है, जिसे जून 2020 में 347.05 करोड़ रुपये की लागत से तैयार किया गया था। निर्माण के दो साल तक यहां कोई राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच नहीं हुआ।

बीसीसीआई से कोई अनुबंध भी नहीं किया गया। मैदान का इस्तेमाल सिर्फ कालेज के खिलाड़ी कर रहे थे, जबकि दर्शक दीर्घा, मीडिया सेंटर, टीवी प्रोडक्शन रूम और लिफ्ट जैसी सुविधाएं बेकार पड़ी रहीं। सीएजी ने इसे संसाधनों की बर्बादी बताया। इसी तरह, मेजर ध्यानचंद स्पोर्ट्स कालेज, सैफई में 207.96 करोड़ की लागत से बना अंतरराष्ट्रीय तरणताल आधुनिक सुविधाओं के बावजूद चालू नहीं हुआ।

लखनऊ के गुरु गोविंद सिंह स्पोर्ट्स कालेज में वेलोड्रोम स्टेडियम निर्माण के दौरान बार-बार कार्य क्षेत्र बदला गया, लेकिन शासन ने इसका कोई ठोस जवाब नहीं दिया। रिपोर्ट में पाया गया कि 13 क्षेत्रीय खेल अधिकारियों में से आगरा, अयोध्या, आजमगढ़, बांदा, बरेली, लखनऊ, झांसी, मेरठ, प्रयागराज और सीतापुर ने संपत्ति पंजिका तैयार नहीं की। भौतिक सत्यापन का कोई सबूत भी नहीं मिला।

37 जिलों में नौ तरणताल जीवन रक्षक की तैनाती और रखरखाव न होने से बंद पड़े रहे। खेल कालेजों में 26 से 46 प्रतिशत सीटें खाली रहीं, जबकि प्रशिक्षण शिविरों में 33 से 38 प्रतिशत प्रशिक्षकों की कमी रही। महिला प्रशिक्षकों की भी बड़ी कमी दर्ज की गई। सीएजी ने सुझाव दिया है कि खेल संरचनाओं के निर्माण से पहले विस्तृत सर्वे और जरूरत का आकलन हो। प्रशिक्षकों के रिक्त पद तुरंत भरे जाएं।

खिलाड़ियों की शिकायतों के निस्तारण के लिए शिकायत निवारण तंत्र बने। खेल विभाग और खेल संघों के बीच समन्वय बेहतर किया जाए। रिपोर्ट ने साफ किया है कि खेलों में पैसा खर्च करने से पहले योजना और जरूरत पर ध्यान नहीं दिया गया, जिसकी वजह से बड़े प्रोजेक्ट भी खिलाड़ियों के काम नहीं आ पा रहे हैं।

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