Sunday, December 7, 2025
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चार लेबर कोड्स के खिलाफ देशव्यापी प्रतिरोध तेज: भोपाल में श्रमिक संगठनों का जोरदार संयुक्त प्रदर्शन

यूनियनों और किसान संगठनों ने 16 बिंदुओं वाला विस्तृत माँगपत्र महामहिम राष्ट्रपति को भेजा—मांगें न मानीं तो राष्ट्रव्यापी संघर्ष तेज करने की चेतावनी

विवेक झा, भोपाल। केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में मजदूर-विरोधी चार लेबर कोड्स को बिना किसी सलाह-मशविरा के लागू करने के विरोध में देशभर के श्रमिक संगठनों ने 26 नवंबर 2025 को जोरदार और संगठित प्रतिरोध दर्ज कराया। इंटक, एटक, सीटू, एआईयूटीयूसी सहित बैंक, बीमा, केंद्र, राज्य और टेलीफोन सेवाओं में कार्यरत विभिन्न ट्रेड यूनियनों के बैनर तले श्रमिकों, कर्मचारियों, कामगारों और अधिकारियों ने काले बिल्ले लगाकर विरोध जताया। प्रदेश की राजधानियों और जिला मुख्यालयों में एक साथ हुए इन प्रदर्शनों में भारी संख्या में श्रमिक जुटे।

राजधानी भोपाल में भी विरोध प्रदर्शन का बड़ा स्वरूप देखने को मिला। शाम 5:30 बजे होशंगाबाद रोड स्थित डाक भवन के सामने सैकड़ों की संख्या में विभिन्न यूनियनों के सदस्य झंडे, बैनर और प्लेकार्ड्स लेकर एकत्र हुए। प्रदर्शनकारियों ने केंद्र सरकार की श्रम-विरोधी नीतियों के खिलाफ जोरदार नारे लगाए और नए लेबर कोड्स को तत्काल वापस लेने की मांग की।

सभा में उठी तीखी आपत्तियां

प्रदर्शन के बाद हुई सभा को वी.के. शर्मा, शिव शंकर मौर्या, प्रमोद प्रधान, पूषण भट्टाचार्य, विनोद लोगारिया, जितेंद्र भाई, शैलेंद्र शर्मा, दीपक रत्न शर्मा, मोहम्मद नजीर कुरैशी, प्रहलाद बैरागी, शैलेंद्र कुमार शैली, पी.एन. वर्मा, जे.पी. झवर, गुणशेखरन, विशाल धमेजा, देवेंद्र खरे, प्रभात खरे, संजय मिश्रा, ओ पी डोंगरीवाल, मुदित भटनागर, अनंत खरे, किशन खेराजानी सहित अनेक प्रमुख पदाधिकारियों ने संबोधित किया।

वक्ताओं ने आरोप लगाया कि 21 नवंबर 2025 को केंद्र सरकार ने ट्रेड यूनियनों से बिना किसी चर्चा के चारों लेबर कोड्स को लागू करने का गजट नोटिफिकेशन जारी किया, जो लोकतांत्रिक मूल्यों और मजदूर अधिकारों पर सीधा प्रहार है।

श्रमिक संगठनों की मुख्य आपत्तियाँ

मजदूरों की सुरक्षा समाप्त – नए कोड्स में श्रमिकों के अधिकारों और सुरक्षा को कमजोर किया गया है, जबकि नियोक्ताओं को अधिक शक्तियां दे दी गई हैं।

हड़ताल लगभग असंभव – शांतिपूर्ण हड़ताल पर भी दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान कर दिया गया है, जिससे यूनियनों की सामूहिक सौदेबाजी खत्म हो जाएगी।

फिक्स्ड टर्म एंप्लॉयमेंट को बढ़ावा – स्थाई नौकरी की जगह फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट लागू होने से ठेका प्रथा को संस्थागत वैधता मिल जाएगी और मजदूरों का रोजगार अस्थिर हो जाएगा।

छंटनी की सीमा बढ़ाई गई – कंपनियों में छंटनी/बंद करने के लिए सरकारी अनुमति की सीमा 100 से बढ़ाकर 300 कर दी गई है, जिससे 300 से कम कर्मचारियों वाली सभी कंपनियां मनमानी छटनी कर सकेंगी।

लेबर कोर्ट्स का समाप्त होना – जिला स्तर के लेबर कोर्ट खत्म कर दिए गए हैं, जिससे मजदूरों को न्याय पाने में देरी और कठिनाई बढ़ेगी।

वक्ताओं ने कहा कि ये कोड्स मजदूर-विरोधी, राष्ट्र-विरोधी और संविधान की भावना के खिलाफ हैं तथा इन्हें वापस लेने तक संघर्ष जारी रहेगा।

श्रमिक संगठनों की प्रमुख मांगें

चारों लेबर कोड्स को पूरी तरह रद्द किया जाए।

किसी भी प्रकार की ठेका प्रथा और आउटसोर्सिंग पर रोक हो।

फिक्स्ड टर्म एंप्लॉयमेंट को तत्काल समाप्त किया जाए।

श्रम शक्ति नीति 2025 का प्रारूप वापस लिया जाए।

मजदूर का न्यूनतम वेतन 26,000 रुपये प्रतिमाह तय किया जाए।

10,000 रुपये प्रतिमाह पेंशन की गारंटी दी जाए।

श्रम कानूनों में किसी भी परिवर्तन से पहले श्रमिक संगठनों से अनिवार्य रूप से वार्ता की जाए।

इनकी रही उपस्थिति

प्रदर्शन और सभा में वी के शर्मा ,शिव शंकर मौर्या, प्रमोद प्रधान, पूषण भट्टाचार्य, विनोद लोगारिया, जितेंद्र भाई, शैलेंद्र शर्मा, दीपक रत्न शर्मा, मोहम्मद नजीर कुरैशी, प्रहलाद बैरागी, शैलेंद्र कुमार शैली, पी एन वर्मा, जे पी झवर, गुणशेखरन, विशाल धमेजा, देवेंद्र खरे, प्रभात खरे, संजय मिश्रा,ओ पी डोंगरीवाल, मुदित भटनागर, अनंत खरे, किशन खेराजानी, रमेश सिंह, राजीव उपाध्याय, सुनील देसाई, राम चौरसिया, राज भारती,के वासुदेव सिंह, मनीष यादव, मनोज गढ़वाल, हरीश शर्मा, मोहन मालवीय, मनासय, जितेंद्र चोइथानी, सत्येंद्र चौरसिया सुदेश कल्याणे, सतीश चौबे, अजय धारीवाल, लीला किशन कुशवाहा, विजयपाल, जीत सिंह नागर, राम हर्ष पटेल, अशोक परिहार,इकबाल बहादुर, एस पी मालवी, शेर सिंह,एस शाक्य, भवानी यादव, राकेश शर्मा, सुनील शर्मा, विजय शर्मा, अशोक सिंगमवर, सुभाष राय, जयदेव, श्याम शाक्य ,रमेश विश्वकर्मा, प्रकाश नेवारे सहित बड़ी संख्या में श्रमिक नेता और कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

राष्ट्रपति को संयुक्त ज्ञापन—किसान और मजदूर संगठनों ने रखी 16 प्रमुख माँगें

प्रदर्शन के बाद ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मोर्चा, मध्यप्रदेश और मध्यप्रदेश संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा राष्ट्रपति महामहिम श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को एक विस्तृत ज्ञापन जिलाधीश, भोपाल के माध्यम से सौंपा गया।

ज्ञापन में किसानों और मजदूरों पर बढ़ते संकट के विस्तृत कारणों का उल्लेख करते हुए महामहिम से तत्काल हस्तक्षेप की अपील की गई। ज्ञापन में कहा गया कि—

श्रम संहिताएँ मजदूरों के अधिकारों को समाप्त कर पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाती हैं

भारत–ब्रिटेन CEPA (CETA) समझौता खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवा और कृषि अर्थव्यवस्था पर गहरा खतरा है

MSP में नगण्य बढ़ोतरी, खरीद व्यवस्था की अव्यवस्था और पीडीएस में कटौती किसानों को विनाश की ओर धकेल रही है

डिजिटल एग्रीकल्चर मिशन और राष्ट्रीय सहकारिता नीति खेती के कॉर्पोरेटीकरण का मार्ग खोलती है

बिजली, बैंक, बीमा, रेलवे और अन्य सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण देश की आर्थिक आत्मनिर्भरता पर प्रहार है

खाद्य व उर्वरक सब्सिडी में भारी कटौती से गरीब और मजदूर वर्ग अत्यंत संकट में है

ग्रामीण बेरोज़गारी और पलायन बढ़ रहा है तथा मनरेगा को कमजोर किया जा रहा है

ज्ञापन में यह भी बताया गया कि ट्रेड यूनियनों और किसान संगठनों की पिछली कई राष्ट्रव्यापी हड़तालों, महापड़ावों और विरोध कार्यक्रमों के बावजूद सरकार ने संवाद का मार्ग नहीं अपनाया।

ज्ञापन में रखी गई 16 मुख्य माँगें

चारों श्रम संहिताओं को रद्द किया जाए, ठेकाकरण–आउटसोर्सिंग समाप्त हो।

सभी फसलों को C2+50% फॉर्मूले पर कानूनी MSP, खरीद गारंटी सहित दी जाए।

राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन 26,000 रुपये/माह और 10,000 रुपये पेंशन लागू की जाए।

किसानों और खेत मजदूरों के लिए पूरी ऋण माफी, सस्ता ऋण सुनिश्चित किया जाए।

सभी सरकारी उपक्रमों का निजीकरण रोका जाए; बिजली सुधार बिल और स्मार्ट मीटर वापस लिए जाएं।

पुरानी पेंशन बहाल हो; EPF-95 पेंशन 9,000 रुपये की जाए, अन्य के लिए 6,000 रुपये पेंशन।

डिजिटल एग्रीकल्चर मिशन व राष्ट्रीय सहकारिता नीति रद्द की जाए।

ज़मीनों का गैरकानूनी अधिग्रहण रोका जाए; भूमि अधिग्रहण और वनाधिकार कानून लागू हों।

मनरेगा में 200 दिन काम और 700 रुपये दैनिक मजदूरी, शहरी क्षेत्रों तक विस्तार।

फसल और पशुधन के लिए सार्वजनिक बीमा योजना सुनिश्चित हो।

महंगाई नियंत्रण, मजबूत PDS, सार्वभौमिक स्वास्थ्य और शिक्षा की सुविधा।

भारत का व्यापार नीति पर पूर्ण संप्रभु अधिकार कायम रहे।

भारत–ब्रिटेन CEPA को समाप्त किया जाए।

सभी व्यापार समझौतों की संसदीय जांच और सार्वजनिक परामर्श अनिवार्य हो।

सांप्रदायिक विभाजन पर रोक के लिए सख्त कानून; धर्मनिरपेक्षता की रक्षा।

महिलाओं, दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा रोकने के लिए मजबूत तंत्र।

सरकार को चेतावनी

ज्ञापन में कहा गया कि यदि सरकार मजदूर–किसान हितों पर सकारात्मक निर्णय नहीं लेती, तो संगठनों द्वारा देशव्यापी आम हड़तालें और बड़े आंदोलन आगे और तेज किए जाएंगे।

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