हाइलाइट्स
केदारनाथ धाम में बर्फबारी से पूरा इलाका बर्फ की मोटी चादर से ढक गया है.
15 नवंबर को केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद होने वाले हैं.
केदारनाथ मंदिर बर्फ से ढकी चोटियों से घिरे एक विशाल पठार के बीच में है.
देहरादून. उत्तराखंड में केदारनाथ धाम (Kedarnath Dham) में हो रही बर्फबारी (Snowfall) के कारण पूरा इलाका बर्फ की मोटी चादर से ढक गया है. बहरहाल अब केदारनाथ धाम के दर्शन के लिए महज कुछ ही दिन बचे हैं और 15 नवंबर को मंदिर के कपाट बंद होने वाले हैं. केदारनाथ मंदिर उत्तरी भारत के पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है, जो समुद्र तल से 3584 मीटर की ऊंचाई पर मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है. इस इलाके का ऐतिहासिक नाम ‘केदार खण्ड’ है. केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के चार धामों और पंच केदारों में से एक है और भारत में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है.
उत्तराखंड के चमोली जिले में ही भगवान शिव को समर्पित 200 से अधिक मंदिर हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण केदारनाथ धाम है. केदारनाथ का मंदिर एक भव्य नजारा पेश करता है, जो बर्फ से ढकी ऊंची चोटियों से घिरे एक विशाल पठार के बीच में खड़ा है. यह मंदिर मूल रूप से 8वीं शताब्दी में जगद् गुरु आदि शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया था. ऐसी मान्यता है कि यह पांडवों के द्वारा बनाए गए पहले के मंदिर की जगह के करीब स्थित है. मंदिर की भीतरी दीवारों को विभिन्न देवताओं की आकृतियों और पौराणिक कथाओं के दृश्यों से सजाया गया है. मंदिर के दरवाजे के बाहर नंदी की एक बड़ी मूर्ति है.
#WATCH | Thick blanket of snow covers Kedarnath Dham in Uttarakhand pic.twitter.com/CQdYMb5cDg
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) November 11, 2023
भगवान शिव को समर्पित केदारनाथ मंदिर की वास्तुकला बहुत शानदार है, जो बेहद बड़े, भारी और समान रूप से कटे हुए भूरे पत्थरों से बना है. यह इस बात को लेकर सभी को अचरज में डाल देता है कि इतना पहले की शताब्दियों में इन भारी पत्थरों को कैसे इन दुर्गम इलाकों में लाया और इस्तेमाल किया जाता था. मंदिर में पूजा के लिए एक गर्भ गृह और एक मंडप है, जो तीर्थयात्रियों और आगंतुकों के जुटने के लिए काम आता है. हिंदू परंपरा में, यह माना जाता है कि भगवान शिव ज्योतिर्लिंगम या ब्रह्मांडीय प्रकाश के रूप में प्रकट हुए थे. ऐसे 12 ज्योतिर्लिंग हैं और केदारनाथ उनमें सबसे ऊंचा है.
केदारनाथ एक यह भव्य प्राचीन मंदिर 3,581 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यह गौरीकुंड के निकटतम स्थान से 16 किमी की दूरी पर है. केदारनाथ में सर्दियों में बहुत भारी बर्फबारी होती है, जिससे कई मीटर तक बर्फ जम जाती है. मंदिर नवंबर से अप्रैल तक बर्फ से ढका रहता है. इसलिए हर साल सर्दियों की शुरुआत में एक शुभ तिथि पर भगवान शिव की पवित्र प्रतीकात्मक मूर्ति को केदारनाथ मंदिर से उखीमठ नामक स्थान पर ले जाया जाता है. जहां इसे भगवान शिव के रूप में पूजा जाता है.
उखीमठ में नवंबर से अगले साल मई तक भगवान शिव की पूजा और अर्चना की जाती है. मई के पहले हफ्ते में पहले से घोषित शुभ तिथि पर भगवान शिव की प्रतीकात्मक मूर्ति को उखीमठ से वापस केदारनाथ ले जाया जाता है और मूल स्थान पर फिर से स्थापित किया जाता है. इस समय मंदिर के दरवाजे तीर्थयात्रियों के लिए खोल दिए जाते हैं. जो पवित्र तीर्थयात्रा के लिए भारत के सभी हिस्सों से आते हैं. यह मंदिर आम तौर पर कार्तिक के पहले दिन (अक्टूबर-नवंबर) को बंद हो जाता है और वैशाख (अप्रैल-मई) में फिर से खुलता है.
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FIRST PUBLISHED : November 11, 2023, 12:27 IST