Thursday, August 14, 2025
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जुलाई में रिटेल महंगाई घटकर 1.55%, जून 2017 के बाद सबसे कम

नई दिल्ली
 जुलाई महीने के लिए खुदरा महंगाई (CPI) का डेटा आ गया है। भारत की खुदरा महंगाई जुलाई में घटकर 1.55% पर आ गई है, जो जून 2017 के बाद का सबसे निचला स्तर है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जुलाई में खाद्य पदार्थों की कीमतों में नरमी और ईंधन की दरों में स्थिरता के चलते महंगाई में यह गिरावट देखने को मिली। यह स्तर भारतीय रिज़र्व बैंक के 4% के महंगाई लक्ष्य से काफी नीचे है।

कम महंगाई दर से उम्मीद है कि उपभोक्ताओं की क्रयशक्ति में सुधार होगा और आर्थिक गतिविधियों को सहारा मिलेगा, हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि इतने कम स्तर पर बनी रहने वाली महंगाई से डिमांड-साइड चुनौतियां भी पैदा हो सकती हैं।

RBI ने महंगाई का अनुमान घटाया

इससे पहले 4 से 6 अगस्त तक हुई RBI मॉनीटरी पॉलिसी कमेटी की मीटिंग में भी वित्त वर्ष 2025-26 के लिए महंगाई का अनुमान 3.7% से घटाकर 3.1% कर दिया है। RBI ने अप्रैल-जून तिमाही के लिए अपने मुद्रास्फीति अनुमान को 3.4% से घटाकर 2.1% कर दिया।

NSO के आंकड़ों के मुताबिक सालाना आधार पर जुलाई 2025 में एक साल पहले (जुलाई 2024) के मुकाबले पूरे भारत के कंज्यूमर फूड प्राइस इंडेक्स (CFPI) पर आधारित खाद्य महंगाई दर -1.76% (प्रॉविजनल) रही. ग्रामीण इलाकों में यह दर -1.74% और शहरी इलाकों में -1.90% रही. जून 2025 के मुकाबले जुलाई में खाद्य महंगाई में 75 बेसिस पॉइंट की गिरावट आई. जुलाई 2025 की खाद्य महंगाई दर जनवरी 2019 के बाद सबसे कम है.

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति जून में 2.1 प्रतिशत और जुलाई 2024 में 3.6 प्रतिशत थी। जुलाई 2025 की मुद्रास्फीति जून 2017 के बाद सबसे कम है जब यह 1.46 प्रतिशत थी।

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने कहा, “जुलाई 2025 के महीने के दौरान हेडलाइन मुद्रास्फीति और खाद्य मुद्रास्फीति में उल्लेखनीय गिरावट मुख्य रूप से अनुकूल आधार प्रभाव और दालों और उत्पादों, परिवहन और संचार, सब्जियों, अनाज और उत्पादों, शिक्षा, अंडे और चीनी और कन्फेक्शनरी की मुद्रास्फीति में गिरावट के कारण है।” जुलाई में खाद्य मुद्रास्फीति दर वर्ष-दर-वर्ष (-) 1.76 प्रतिशत रही।

क्यों अहम है यह गिरावट?

    महंगाई में लगातार कमी का मतलब है कि आम लोगों के बजट पर दबाव घट रहा है.

    RBI (भारतीय रिजर्व बैंक) अपनी ब्याज दर नीति तय करते समय CPI महंगाई को अहम संकेतक मानता है.

    जब महंगाई बहुत कम होती है, तो RBI के पास रेपो रेट घटाने का मौका होता है, जिससे बैंकों के FD (फिक्स्ड डिपॉजिट) और लोन की ब्याज दरों पर असर पड़ सकता है.

क्या और घटेंगे बैंक एफडी रेट?

    अगर आने वाले महीनों में महंगाई दर इसी तरह कम बनी रहती है, तो RBI अगले मौद्रिक नीति समीक्षा (Monetary Policy Review) में रेपो रेट घटा सकता है. 

    रेपो रेट घटने पर बैंकों को सस्ता फंड मिलता है, जिससे वे लोन सस्ते करते हैं.

    लेकिन साथ ही, FD रेट भी घट सकती है, क्योंकि बैंक कम ब्याज पर पैसा जुटा सकते हैं.

    हालांकि, यह तुरंत तय नहीं है, क्योंकि RBI सिर्फ महंगाई ही नहीं, बल्कि आर्थिक वृद्धि, डॉलर-रुपया दर और ग्लोबल ब्याज दरों को भी ध्यान में रखता है.

 

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