बीजिंग
चीन की जनसंख्या में लगातार तीसरे साल कमी आयी है. राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक 2023 में चीन की कुल जनसंख्या 1.408 अरब थी. जिसमें 2022 की तुलना में 20.8 लाख की गिरावट दर्ज की गई. यह गिरावट पिछले छह दशकों में सबसे तेज है. यह भी ध्यान देने योग्य है कि 2022 में भी 13.9 लाख की कमी आई थी. यह दिखाता है कि चीन में जन्म दर, मृत्यु दर से लगातार कम हो रही है. जिससे देश की जनसंख्या में गिरावट आ रही है. इस स्थिति से निपटने के लिए अब चीन की सरकार कदम उठा रही है.
चीनी सरकार ने 28 जुलाई को 3 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सालाना 3,600 युआन (£376) की राष्ट्रव्यापी चाइल्डकेयर सब्सिडी की घोषणा की है. यह योजना जनवरी 2025 से लागू होगी और 2022 से 2024 के बीच जन्मे बच्चों को भी इसका लाभ मिलेगा. यह सब्सिडी कर-योग्य आय (taxable income) नहीं मानी जाएगी और न ही इसका असर गरीबी सहायता की पात्रता पर पड़ेगा. इस कदम से पता चलता है कि सरकार का उद्देश्य इस सब्सिडी को प्रभावी ढंग से लागू करना है, न कि इसे नौकरशाही में फंसाना.
गिरती जन्मदर बनी राष्ट्रीय इमरजेंसी
यह नई नीति पिछले तरीकों से अलग है, जहां जनसंख्या वृद्धि को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी प्रांतीय और शहरी सरकारों पर छोड़ दी गई थी. पिछले कुछ सालों में 20 से ज्यादा क्षेत्रों ने छोटे-छोटे प्रोत्साहन कार्यक्रम चलाए, जैसे आवास छूट, मासिक भत्ते और बेबी बोनस. लेकिन कोई भी जनसंख्या में गिरावट को रोकने में कामयाब नहीं हुआ. इस सीधे हस्तक्षेप से बीजिंग ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह गिरती जन्म दर को अब सिर्फ एक जनसांख्यिकी चिंता नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय इमरजेंसी मानता है. चीन के सामने अपनी आर्थिक वृद्धि, श्रम शक्ति, पेंशन प्रणाली और स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे को बनाए रखने की चुनौती है. जिस तरह से चीन की जनसंख्या बूढ़ी हो रही है और युवा आबादी कम हो रही है. उसे देखते हुए यह खतरा है कि चीन ‘अमीर बनने से पहले ही बूढ़ा’ हो जाएगा.
चीन में लोग बच्चे क्यों नहीं पैदा कर रहे हैं?
चीन में जनसंख्या घटने के कई कारण हैं, जिनमें सामाजिक और आर्थिक दोनों तरह के बदलाव शामिल हैं.
विवाह की संख्या में कमी: चीन में लोग अब शादी करने से बच रहे हैं या देर से शादी कर रहे हैं. जिससे बच्चों की संख्या में कमी आ रही है. 2024 में सिर्फ 61 लाख शादियाx हुईं, जबकि 2023 में यह संख्या 77 लाख थी. यह एक बड़ा बदलाव है, जो सिर्फ चीन ही नहीं बल्कि जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में भी देखा जा रहा है.
बच्चों की परवरिश का खर्च: चीन में बच्चों को पालना बहुत महंगा हो गया है. 2024 की एक रिपोर्ट के अनुसार एक बच्चे को 18 साल तक पालने में शहरी चीन में लगभग 538,000 युआन (लगभग ₹62 लाख) का खर्च आता है. यह चीन की प्रति व्यक्ति जीडीपी से 6.3 गुना ज्यादा है. इसी वजह से बच्चों को ‘तुंजिनशौ’ या ‘सोना खाने वाले जानवर’ भी कहा जाने लगा है.
कार्यस्थल पर महिलाओं की समस्याएं: चीन में महिलाओं को मां बनने के बाद नौकरी में भेदभाव का सामना करना पड़ता है. कई महिलाओं को मातृत्व अवकाश (maternity leave) के कारण नौकरी से निकाल दिया जाता है या प्रमोशन नहीं मिलता है. हालांकि महिलाओं को 128 से 158 दिन की छुट्टी मिलती है, लेकिन पुरुषों को बहुत कम छुट्टी मिलती है. इससे बच्चे पालने की जिम्मेदारी ज्यादातर महिलाओं पर आ जाती है.
आधुनिक जीवन का दबाव: आधुनिक जीवनशैली में बच्चों को पालने का दबाव भी बढ़ गया है. शहरों में घर बहुत महंगे हैं, शिक्षा में बहुत प्रतिस्पर्धा है और अच्छी व सस्ती चाइल्डकेयर की कमी है. इन सब वजहों से परिवार बनाना एक बोझ जैसा लगने लगा है. खासकर बड़े शहरों में जहां रहने का खर्च बहुत ज्यादा है और वेतन या नौकरी की सुरक्षा उतनी नहीं है.
प्रांतीय सरकारों द्वारा उठाए गए कदम
होहोट, आंतरिक मंगोलिया: दूसरे या तीसरे बच्चे के लिए 100,000 युआन (£10,400) तक की वार्षिक सब्सिडी, जो बच्चे के 10 साल का होने तक दी जाती है. इसके अलावा नई माताओं को मुफ्त दूध और 3,000 युआन का डेयरी उत्पाद वाउचर भी मिलता है.
तियानमेन: तीसरे बच्चे के माता-पिता को नए घर खरीदने पर 12,500 पाउंड की छूट.
हांग्जो: चाइल्डकेयर वाउचर वितरित किए गए़.
शेनयांग और चांगचुन: प्रति बच्चे सालाना 1,800 से 3,600 युआन तक की नकद सब्सिडी।
इन प्रयासों के विफल होने के कारण
ये सभी प्रोत्साहन कागज पर तो अच्छे लगते हैं, लेकिन असल में ये बच्चों को पालने के भारी खर्च के सामने बहुत कम हैं. जैसा कि निंग्ज़िया की एक मां ने बताया, इन सब्सिडी से बच्चे के लिए डायपर और फॉर्मूला दूध जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करना भी मुश्किल है. ये प्रोत्साहन मध्यम वर्ग और गरीब परिवारों के लिए कोई बड़ा बदलाव नहीं ला पाए हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि ये योजनाएं उन बड़ी समस्याओं को हल करने में नाकाम रहीं, जो बच्चों को पैदा न करने का मुख्य कारण हैं. ये समस्याएं हैं- नौकरी की असुरक्षा, महंगे घर, असमान अवकाश नीतियां और बच्चों को पालने की जिम्मेदारी में लिंग-भेद. 2022 में हुए एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में लगभग 90% चीनी लोगों ने कहा था कि अगर उन्हें सालाना 12,000 युआन भी दिए जाएं, जो अभी दी जा रही राशि से चार गुना ज्यादा है, तब भी वे और बच्चे पैदा करने के बारे में नहीं सोचेंगे. यह साफ दिखाता है कि लोग पैसों से कहीं ज्यादा, सामाजिक और आर्थिक स्थिरता चाहते हैं.
अभी पर्याप्त क्यों नहीं सब्सिडी
राष्ट्रीय चाइल्डकेअर सब्सिडी चीन सरकार द्वारा उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है. क्योंकि यह पहली बार है जब प्रजनन क्षमता को बढ़ाने के लिए सीधे वित्तीय मदद दी जा रही है. इस योजना के तहत देश भर में मुफ्त प्रीस्कूल की भी बात कही गई है, जिससे माता-पिता पर वित्तीय दबाव कम होगा. इस सब्सिडी का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसे पाना बहुत आसान है. इसमें कोई जटिल आवेदन प्रक्रिया नहीं है, न ही इसे कर योग्य आय माना जाएगा. राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग का अनुमान है कि इससे लगभग 2 करोड़ परिवार लाभ उठा सकते हैं.
विशेषज्ञों का क्या है मानन?
हालांकि यह योजना एक अच्छी शुरुआत है. कई विशेषज्ञ मानते हैं कि इसका असर सीमित हो सकता है. येल विश्वविद्यालय की जनसांख्यिकी विशेषज्ञ एम्मा ज़ैंग के अनुसार जब तक सरकार सस्ती चाइल्डकेयर, महिलाओं के लिए नौकरी की सुरक्षा और पुरुषों के लिए उचित पितृत्व अवकाश जैसी समस्याओं को हल नहीं करती, तब तक इस योजना का असर बहुत कम होगा. दक्षिण कोरिया इसका एक बड़ा उदाहरण है. दशकों से वहां की सरकार उदार शिशु बोनस, आवास भत्ते और छुट्टी की नीतियां दे रही है, लेकिन फिर भी उसकी जन्म दर दुनिया में सबसे कम है. इसका मतलब यह है कि एक बार जब समाज में जन्म दर कम होने की सोच गहरी हो जाती है, तो उसे सिर्फ पैसों से बदलना लगभग नामुमकिन हो जाता है. सामाजिक बदलाव सिर्फ आर्थिक प्रोत्साहन से नहीं होते, बल्कि इसके लिए एक बड़ा सामाजिक और ढांचागत परिवर्तन चाहिए होता है.
क्या सांस्कृतिक बदलाव की जरूरत?
चीन को अपनी जनसंख्या में गिरावट रोकने के लिए सिर्फ पैसों से ज्यादा, एक बड़ा सांस्कृतिक बदलाव लाना होगा. अगर चीन को इस समस्या से निपटना है तो उसे लैंगिक असमानता को खत्म करना होगा, जो घर और दफ्तर दोनों जगहों पर दशकों से मौजूद है. मां और बाप, दोनों के लिए पालन-पोषण को आसान और आर्थिक रूप से संभव बनाना होगा. समाज से भी उन्हें समर्थन मिले, यह सुनिश्चित करना होगा. यह स्वीकार करना होगा कि एक-संतान नीति ने सिर्फ परिवारों का आकार ही छोटा नहीं किया, बल्कि बच्चों और परिवार के बारे में लोगों की सोच भी बदल दी है.
संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 2024 से 2054 के बीच चीन की आबादी 20.4 करोड़ तक कम हो सकती है. और सदी के अंत तक यह संख्या 78.6 करोड़ तक पहुंच सकती है, जो 1950 के दशक के बाद सबसे कम होगी. यह देखना अभी बाकी है कि सरकार की नई नीतियां इस समस्या को हल करने में कामयाब होंगी या ये सिर्फ आखिरी कोशिश बनकर रह जाएंगी.